केजरीवाल कभी नहीं बन पायेंगे प्रशान्त?दोनों में है भारी अंतर

SERAJ ANWAR


पत्रकारिता के बाज़ारवाद में खड़ा कुछ पत्रकारों को लगता है कि पटना का गांधी मैदान,दिल्ली का रामलीला मैदान बन जायेगा.प्रशान्त किशोर के आमरण अनशन की तुलना अन्ना आंदोलन से की जा रही है.कहा जा रहा है,बिहार में 2011 जैसा अन्ना आंदोलन खड़ा हो जायेगा.कितने कच्चे लोग हैं.

अनशन तोड़ने के लिए ‘सेफ
पैसेज’ ढूँढ रहे पीके

चार दिन में प्रशान्त चालीस लोगों की संख्या नहीं बढ़ा पाये,अन्ना आंदोलन ख़ाक होगा?जो जन सुराजी पहले दिन से प्रशान्त के साथ अनशन पर बैठे हैं,वही बैठे हैं.बल्कि उसमें कमी आयी है.अब तो प्रशान्त,अनशन तोड़ने के लिए’सेफ पैसेज’ढूँढ रहे हैं.प्रशासन पूछ नहीं रहा,सरकार भाव नहीं दे रही है.अनशन पर बैठना है तो बैठे रहो.बीपीएससी को री-एग्ज़ाम लेना था,पटना प्रशासन ने पीके को मुग़ालते में रख कर शांतिपूर्ण ढंग से परीक्षा ले लिए. प्रशान्त का दावा था,परीक्षा रद्द करवा के रहेंगे.अनशन ख़त्म करने का अब कोई रास्ता नहीं बचा है.ठंड भी बर्दाश्त नहीं हो रही.सुना है कि बीती रात डिहाइड्रेशन हो गया था.प्रशान्त स्वस्थ्य और सलामत रहें,यह कामना है हमारी.जान है तो जहान है.

आंदोलन धार नहीं पकड़ पाया
पीके का आंदोलन अन्ना जैसा रूप धारता तो गांधी मैदान अब तक भर चुका होता.अन्ना आंदोलन में रामलीला मैदान में हुजूम था.उसका असर न सिर्फ दिल्ली,पूरे देश में था.जहां-तहां लोग धरना पर बैठ गये थे.योजनाबद्ध तरीक़े से आंदोलन को आगे बढ़ाया गया था.उस आंदोलन में कई दिमाग़ लगे हुए थे.एक तरफ अन्ना हज़ारे को स्तम्भ बनाया गया तो दूसरी तरफ अरविन्द केजरीवाल,योगेन्द्र यादव,संजय सिंह,शाज़िया इल्मी,कुमार विशवास,मनीष सिसोदिया,किरण बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव छत बने हुए थे.

जन सुराज को ‘बैठाने’वाले ख़ुद प्रशान्त
प्रशान्त का जितना तेज़ी से उभार हुआ,उतना ही तेज़ी से बैठ गये.जन सुराज को बैठाने वाले कोई और नहीं,ख़ुद प्रशान्त हैं.इनके दिमाग़ से रणनीतिकार का भूत उतर नहीं रहा है.टीम तो इनके पास भी थी और है.पूर्व केन्द्रीय मंत्री और समाजवादी नेता देवेन्द्र प्रसाद यादव,पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री डॉ.मोनाज़िर हसन,जनता दल राष्ट्रवादी के संस्थापक और बिहार के जाने-माने मुस्लिम चेहरा अशफाक़ रहमान,पूर्व सांसद सीताराम यादव,पूर्व एमएलसी रामबली सिंह,पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना,पूर्व सांसद डॉ.एजाज़ अली,पूर्व मंत्री और दिग्गज नेता रहे रघुनाथ पांडे घराने की पुत्रवधु विनीता विजय,नामी अधिवक्ता वाईवी गिरी आदि हर क्षेत्र,हर दिमाग़ के लोग.लेकिन,प्रशान्त इन हस्तियों को सजाने और जोड़ कर रखने में नाकाम रहे.यदि इन लोगों को इस्तेमाल किये होते,अधिकार दिये होते तो अनशन आज वाक़ई में आंदोलन बन जाता.

धनकुबेर की छवि से नुक़सान
प्रशान्त के अग़ल-बग़ल में कौन लोग बैठे हैं,आप देख सकते है? नेताओं को आसपास बैठने नहीं दिया जा रहा है.ज़ाहिर सी बात है अनशन का राजनीतिक असर नहीं है.रही सही कसर करोड़ों रुपये के लग्ज़री वेनिटी वैन ने बिगाड़ दिया.मुद्दा कुछ है और चर्चा कुछ हो रही है.प्रशान्त एक और फोबिया से निकल नहीं पा रहे.उन्होंने धनकुबेर की छवि बना रखी है.धनकुबेर राजनीति में सफल नहीं होते.भारतीय लोकतंत्र की जड़े आज भी संघर्षशील जनता और नेता से जुड़ी हैं.धनकुबेर को ही नेता बनना होता तो अडानी-अम्बानी नहीं बन जाते?प्रशान्त को रणनीतिकार होने का भी घमंड है.पत्रकारों(अपने पाले हुए नहीं)से बात करते हुए झुंझला जाते हैं.जनता को ताना देते हैं.नेताओं को डिकटेट करते हैं.कहते हैं कि एक बार भाषण देते हुए प्रशान्त ने शेख़पूरा हाउस में माइक फेंक दिया था.यह नेता वाला गुण नहीं हो सकता.पार्टी के कार्यकर्ता या नेतागण आपका स्टाफ़ नहीं हो सकता है,सहयोगी हो सकता हैं.बाहर से देखने में जन सुराज चमकदार लगता है,अंदर जाने के बाद पता चलता है.
-‘बाहर से फ़िटफाट,अंदर से मुकामा घाट’

(लेखक समय मंथन के ग्रूप एडिटर हैं)

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