SERAJ ANWAR
आज यानी रविवार को जन सुराज की कोर कमिटी की बैठक होनी है.बैठक से पूर्व इस्तीफ़ा का दौर शुरू हो गया है.पूर्व केन्द्रीय मंत्री और क़द्दावर समाजवादी नेता देवेन्द्र प्रसाद यादव ने कोर कमिटी से इस्तीफ़ा दे दिया है.बताया जा रहा है कि जल्द ही कुछ और दिग्गज नेताओं का इस्तीफ़ा हो सकता है.जंबोजेट कोर कमिटी में शामिल किये गए तीन दर्जन से अधिक लोग ख़ुद को अपमानित और घुटन महसूस कर रहे हैं.
कौन हैं देवेन्द्र प्रसाद यादव?
1989 से 1998 तक और 1999 से 2009 तक झंझारपुर से सांसद रहे. देवेगौड़ा और गुजराल मंत्रालय में वाणिज्य के अतिरिक्त प्रभार के साथ खाद्य, नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहे. .इस कार्यकाल के दौरान, उन्होंने किसानों के लिए ऐतिहासिक खाद्य विधेयक पारित किया जो सराहनीय है.वे 1977 के विधायक हैं. फुलपरास से बिहार विधान सभाके लिए चुने गए लेकिन कर्पूरी ठाकुर के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.जो बिहार के मुख्यमंत्री बने.बाद में देवेन्द्र यादव बिहार विधान परिषद के लिए चुने गए और मई 1978 से नवंबर 1989 तक रहे.राज्यसभा छोड़ कर वे लोकसभा,विधानसभा और विधान परिषद तीन सदन के सदस्य रहे.इन्होंने समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक नाम से पार्टी भी बनायी.अभी भी घोर समाजवादी हैं.बिहार में समाजवाद के वे आख़री झंडाबरदार हैं.
क्यों दिया इस्तीफ़ा?
सोशल मीडिया पर वायरल इस्तीफ़ानामा में कहा गया है कि मैं अपरिहार्य कारणों से आपके 125 सदस्यीय राज्य कोर कमिटी से स्वेच्छा से त्याग-पत्र देता हूं.यह त्याग-पत्र पार्टी के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती को प्रेषित है,साथ ही जन सुराज के सूत्रधार और पार्टी के संस्थापक प्रशान्त किशोर को भी इसकी कॉपी भेजी गयी है.मालूम हो कि पार्टी ने हाल में 125 सदस्यीय कोर कमिटी की घोषणा की है.दिलचस्प बात यह है कि चार बार के सांसद,पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ.देवेन्द्र प्रसाद यादव का नाम दसवें नम्बर पर है.उनसे उपर कोई बसंत चौधरी,संत कुमार पासवान,श्रीकृष्ण सिंह,केसी सिन्हा,राघवेंद्र पाठक को रखा गया है.यानी पॉलिटिकल प्रोटोकॉल का ख़्याल नहीं रखा गया.राजनीति में वरीयता मायने रखता है.देवेन्द्र यादव को जानने वाले लोग बताते हैं कि उनके क़द का ख़्याल नहीं रखा गया यह बात उन्हें बुरी लगी होगी.ठेठ भाषा में कह सकते हैं कि प्रशान्त किशोर ने बाघ और बकरी को एक ही घाट पर पानी पिलाने ग़ैर राजनीतिक फ़ार्मूला पेश किया.जिससे पार्टी के अंदर भारी खलबली है.डॉ.मोनाज़िर हसन बिहार सरकार में मंत्री रहे,एक बार सांसद भी रहे.मुसलमानों के बड़ा चेहरा हैं.उनका नाम भी लिस्ट में बीसवें नम्बर पर है.डॉ.एजाज़ अली राज्यसभा सदस्य रहे हैं.उनको 23वें पायदान पर रखा गया है.इसी तरह प्रो.रामबली सिंह चंद्रवंशी को 37 नम्बर पर रखा गया है.रामबली सिंह का शुमार मंझे हुए नेताओं में होता है.विधान परिषद के सदस्य रहे हैं.
बाहर से पैकेजिंग अच्छी,अंदर से खोखला
प्रशान्त किशोर रणनीतिकार रहे हैं.पैकेजिंग करना जानते हैं.लेकिन,यह तब की बात थी जब वह विभिन्न राजनीतिक दलों की पैकेजिंग करते थे.अब जब अपनी पार्टी की बारी आयी तो पूरा माअमला खुलता जा रहा है.बाहर से पैकेजिंग देख कर जन सुराज से जो लोग जुड़े अंदर जा कर पता चला पार्टी तो पूरी खोखली है.न किसी का आदर-सम्मान,न क़द का ख़्याल.उनसे राय-मशविरा तक नहीं किया जाता.बताया जाता है कि उन्हें नेता नहीं,रबड़ स्टम्प चाहिए.भारतीय राजनीति में एक कहावत बहुत चर्चित हुई थी.खाता न बही,जो सीता राम(केसरी)कहे वही सही.यही हाल,जन सुराज का है.जो पीके कहे वही सही.जन सुराज से जुड़े लोग कहते हैं कि प्रशान्त किशोर का आइ-पैक से मोह छूट नहीं रहा है.जन सुराज को पार्टी में बदलने के बाद भी इसका स्वरुप आइ-पैक का ही है.नेताओं को अभी तक कोई स्वतंत्र अधिकार प्राप्त नहीं है.नेताओं से प्रशान्त किशोर को भारी चिढ़ है या उनसे ख़तरा महसूस करते हैं.याद होगा 2 अक्टूबर को उन्होंने एलान किया था,3 अक्टूबर(यानी दूसरे दिन)को लीडर्सशिप काउन्सिल की घोषणा कर दी जायेगी.आज की तारीख़ तक लीडर्सशिप काउन्सिल नहीं बन पायी.अभी तक प्रदेश कमिटी का गठन तक नहीं हुआ .बिना संसदीय बोर्ड के उपचुनाव में पार्टी चली गयी.उपचुनाव में जन सुराज का जो हस्र हुआ मालूम ही है.उसी चिढ़ में बेलागंज के पार्टी उम्मीदवार मोहम्मद अमजद को कोर कमिटी में नहीं रखा गया.तिरहुत स्नातक से निर्दलीय लड़ विधान परिषद पहुंचे वंशीधर ब्रजवासी 2 अक्टूबर को पार्टी लॉन्च् के दिन जन सुराज के मंच पर थे.ब्रजवासी संस्थापक सदस्य रहे हैं.पार्टी ने आइ-पैक के कहने पर यह कह कर उम्मीदवार नहीं बनाया कि उनके पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं है.दीगर बात है प्रशान्त किशोर अपनी सभाओं में कहते रहे हैं,आप अपना बेटा दीजिए चुनाव हम लड़ायेंगे,जितना पैसा खर्च होगा करेंगे.ब्रजवासी ने पीके सरीखे बड़े रणनीतिकार को मात देकर साबित किया कि बिना पैसा के भी चुनाव जीता जा सकता है.रणनीतिकार और राजनीतिज्ञ में यही फर्क़ है.पीके राजनीति के ‘र’को समझने के लिए तैयार नहीं हैं.अभी तक वे ‘र’के मतलब रणनीति ही समझ रहे हैं और रणनीति है कि पिटती जा रही है.