
Seraj Anwar
सिवान के चार बार के सांसद डॉ.मोहम्मद शहाबुद्दीन के चाहने वाले,उनके समर्थक राजद के बाहर से भी थे.पसंद ना-पसंद अपनी जगह,मुसलमानों के वह कई ज़ाविया से चहेते थे.हालांकि,मरहूम ने कभी मुस्लिम नेता होने का दावा नहीं किया.क़यादत नहीं,सियासत की बात करते थे. ‘सियासत’ने ही उनकी जान ले ली.
लम्बे अर्से बाद भागलपुर जेल से बाहर निकले थे,फ़ासिस्ट मीडिया ने उंग्ली कर दी,राजद के पूर्व सांसद ने खुली फ़िज़ा में खुल कर बयान दे दिया.नीतीश कुमार को परस्तिथि का मुख्यमंत्री कह दिया.यह बात वज़ीर ए आला को नागवार गुज़रनी थी,मीडिया की मंशा यही थी.काफी शोर मचा और मो.शहाबुद्दीन फिर से जेल में डाल दिये गये.इस बार बिहार नहीं,तिहाड़ जेल में.लालू प्रसाद की पार्टी गठबंधन में शामिल थी.यानी नीतीश राजद के भी मुख्यमंत्री थे.तेजस्वी यादव ने बिहार सरकार के निर्णय का विरोध नहीं किया,लालू प्रसाद अपने नेता के पक्ष में खड़े नहीं हुए,बल्कि बिहार सरकार द्वारा मोहम्मद शहाबुद्दीन की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिये जाने में राजद की सहमति रही,ऐसा कहा जाता है.शहाबुद्दीन सिवान जेल से तिहाड़ भेज दिये गए.बीमार पड़े और उनकी मौत हो गयी.मौत मुतअइन है लेकिन उनके समर्थक आज भी मानते हैं राजद ने उनकी जान ले ली.
बहरहाल,यही ओसामा तन ए तनहा अपने वालिद के जनाज़े को बिहार लाने के लिए तड़पते रहे,मचलते रहे.दिल्ली में कभी इधर दौड़ते,कभी उधर दौड़ते रहे.राजद के किसी नेता का साथ नहीं मिला.कहते हैं,लालू परिवार उस वक़्त दिल्ली में ही था.अस्पताल मिलने या सहानुभूति जताने कोई नहीं गया.
पार्टी ने अपने संस्थापक नेता को जीते-जी बेगाना बना दिया था और मरने के बाद मुकम्मल भूला दिया.समर्थक काफी ग़ुस्से में रहे.कल की तारीख़ तक उक्त मामला में सहानुभूति हिना शहाब,ओसामा शहाब के साथ रहा.वह सहानुभूति खो गयी सी लगती है.सोशल मीडिया में शहाबुद्दीन समर्थकों का वह भौकाल,आज हिना शहाब और ओसामा के राजद में शामिल होने पर नहीं दिख रहा है.
साहेब के नाम से प्रसिद्ध मोहम्मद शहाबुद्दीन के समर्थक निश्चित रूप से ठगे महसूस कर रहे होंगे.वह सोच रहे होंगे कि फिर साहेब के लिए ख़ून जलाने का क्या फ़ायदा हुआ?जब बिना शर्त ही वापसी करनी थी.लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने सिवान का टिकट हिना शहाब के लिए होल्ड पर रखा था तो राजद के टिकट पर ही चुनाव लड़ लेना चाहिए था.अभी क्या मिलना है?लालू-तेजस्वी न राज्यसभा भेज सकते हैं न विधान परिषद?विधानसभा चुनाव का एक साल है.शहाबुद्दीन के साथ लालू परिवार का जो रवैया रहा,उसकी प्रायश्चित भी नहीं किया राजद ने.पार्टी ने पुण्यतिथि तो शहाबुद्दीन का मनाया ही नहीं.
शहाबुद्दीन अपने बूते सिवान जीतते रहे.यदुवंशी राजनीति से उनका कभी मधुर सम्बन्ध नहीं रहा.
आरोप है कि लालू प्रसाद की जाति ने शहाबुद्दीन परिवार को चुनाव में कभी खुल कर साथ नहीं दिया,सियासी साज़िश का शिकार रहा है शहाबुद्दीन परिवार.2009,2014 और 2019 में हिना शहाब के हारने की वजह क्या है?तीनों बार हिना राजद के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ीं.इस बार 2024 में भी उन्हें हराने के लिए लालू परिवार ने कम ज़ोर नहीं लगाया?क्यों नहीं अपना उम्मीदवार नहीं उतार कर हिना को समर्थन दिया?क्या गारंटी है ओसामा को टिकट दे कर हराने का प्रयास नहीं किया जायेगा.राजनीति बड़ी कमीनी चीज़ है,इसलिए समर्थकों को अपना ख़ून नहीं जलाना चाहिए.कब किस वक़्त पलटी मार दे कहा नहीं जा सकता.रॉबिनहूड तर्ज़ पर ज़िंदगी भर राजनीति करने वाले,किसी के आगे नहीं झुकने वाले शहाबुद्दीन साहब की रूह आज किस हाल में होगी,यह हम नहीं बता सकते मगर उनकी कही बात याद है कि ‘मैं कह कर जाउंगा कि सांसों ने मुझे हरा दिया,किसी जम्हूरियत ने मुझे नहीं हराया’.आज कौन किसको हराया इसकी समीक्षा होनी शेष है.