23 Oct 2025, Thu

बिहार में डिजिटल गवर्नेंस का “कमाल”: कुत्ते, ट्रैक्टर और अब “एयरफोन” को भी मिला प्रमाण पत्र!

GOVIND/MANTHAN TODAY

बिहार की धरती इन दिनों अजब-गजब प्रमाण पत्रों की फैक्ट्री बन चुकी है। जहां आम आदमी महीनों चक्कर काटने के बाद भी निवास प्रमाण पत्र के लिए लाइन में धक्के खाता है, वहीं डॉग बाबू, सोनालिका ट्रैक्टर और अब “एयरफोन” जैसे अजीब पात्र आराम से अपना प्रमाण पत्र बनवा ले जा रहे हैं। जी हां, मधेपुरा जिले के घैलाढ़ प्रखंड में “Airfone” नामक एक प्राणी—या कहें एक मोबाइल ब्रांड—ने बाकायदा निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दे डाला। पिता का नाम “मोबाइल”, माता का नाम “बैट्री” और आवेदन पूरी गंभीरता से स्वीकार भी कर लिया गया!

अब सवाल उठता है—यह कैसा डिजिटल गवर्नेंस है ? क्या बिहार प्रशासन सिर्फ बटन दबाकर फॉर्म पास करने के लिए बैठा है ? या फिर सिस्टम में बैठे बाबू अब सिर्फ चाय-भूंजा के बीच ऑनलाइन आवेदनों पर “एंटर” दबाते हैं और फारिग हो जाते हैं ?
“डॉग बाबू” के नाम पर प्रमाण पत्र की घटना थमी नहीं थी कि मोतिहारी से “ट्रैक्टर बाबू” आ गए। सोनालिका ट्रैक्टर ने प्रमाण पत्र के लिए आवेदन दिया, जिसमें पिता का नाम “स्वराज ट्रैक्टर” और मां का नाम “कार देवी” था। icing on the cake, फोटो भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा की लगा दी गई। अब सवाल ये नहीं है कि ऐसा कैसे हुआ, सवाल यह है कि ऐसा बार-बार क्यों हो रहा है ?

सिस्टम मज़ाक बनकर रह गया है?

जब एक ट्रैक्टर, एक कुत्ता और एक मोबाइल ब्रांड को प्रमाण पत्र मिल सकता है, तो फिर आम आदमी का दोष क्या है? जो असली निवासी है, जो वोट डालता है, टैक्स देता है, वह दर-दर भटके—और ये “नकली पात्र” सिस्टम को नचा दें ? सरकार और प्रशासन के अधिकारी अगर थोड़ी भी ज़िम्मेदारी निभा रहे होते, तो ये हालात न होते। लेकिन क्या किया जाए? जब ऊपर से नीचे तक कामचोरी का आलम हो, तब “भूंजा फांकते हुए” बाबुओं से कोई उम्मीद रखना बेकार है। प्रमाण पत्र बनाते समय तो लापरवाही होती है, और जब पोल खुलती है, तो उन पर कार्रवाई का नाटक कर लिया जाता है।

बिहार में इन दिनों मतदाता पुनरीक्षण का काम चल रहा है। अधिकारी गांव-गांव जाकर सत्यापन कर रहे हैं—कम से कम कागज़ों में तो यही लिखा है। लेकिन हकीकत में? आम आदमी का नाम मतदाता सूची में जोड़ना हो या प्रमाण पत्र बनवाना—तो फॉर्म एक नंबर, आधार दूसरा नंबर, मोबाइल OTP नहीं आता, और बाबू कहते हैं—”कल आना!” लेकिन एक डॉग बाबू, एक ट्रैक्टर बाबू और अब एक एयरफोन बाबू आराम से सिस्टम में घुस जाते हैं। क्यों ? क्योंकि कोई चेक नहीं करता, कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। और ऊपर से अधिकारी भी खुद को ‘बिल्कुल निर्दोष’ बताते हैं।

इन हालातों में मैं तो कहता हूं—बिहार में अब सबको प्रमाण पत्र मिलना चाहिए। गधा, सूअर, उल्लू, मगरमच्छ, झींगुर… सबको! क्योंकि जब असली नागरिक दरकिनार हो रहे हैं और काल्पनिक पात्रों को सरकारी मान्यता मिल रही है, तो इस लोकतंत्र का तमाशा पूरा क्यों न हो ? आखिर में, एक सलाह—सरकार अगर वाकई गंभीर है, तो सबसे पहले इन कामचोर अधिकारियों पर नकेल कसे, पूरे सिस्टम का ऑडिट कराए और डिजिटल गवर्नेंस के नाम पर जो मज़ाक चल रहा है, उसे रोके। वरना अगली बार कोई “ब्लूटूथ” या “पॉवरबैंक बाबू” प्रमाण पत्र लेकर सामने आ जाएगा… और फिर सरकार सिर्फ तमाशबीन बनकर रह जाएगी…!

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