ऐसी होली बार-बार आए,हर बार आये.हर इंसान के जीवन को रंगारंग ख़ुशियों से भर दे.भगवान विष्णु,महात्मा बुद्ध और सूफी पीरमंसूर की धरती गया पर इसी लिए मुझे नाज़ है.गया शहर और यहां के सम्मानित नागरिकों को समय मंथन का सलाम
सेराज अनवर
गया की होली हुड़दंग से मशहूर रही है.बहुत गंदी होली खेली जाती थी यहां.वह दृश्य,यह डर दिल में समाया था.एक दशक बाद होली में अपने शहर गया में हूं.पहले का मंजर ज़हन में था,तीन दिन घर में ही दुबक कर रहना होगा.गया में कम से कम तीन दिनों तक होली खेलने की परम्परा रही है.एक दिन अगजा,दूसरे दिन होली,तीसरे दिन झुमटा.झुमटा लगता है अब लुप्त होता जा रहा है.गधे पर बैठ कर लड़के गीत गाते मुहल्ला में निकलते थे.इस दिन शहर में छतों से प्लास्टिक या बाल्टी से आते-जाते लोगों पर पानी का बौछार किया जाता था.बुढ़वा होली,मटका भी ख़त्म होने के कगार पर है.जो सबसे अहम बात है तीन दिनों तक बेवडों का शहर पर क़ब्ज़ा रहता था.छेड़छाड़,ज़ोर ज़बरदस्ती ,हिंसा की खबरें आती थीं,मौतें अनगिनत होती थी.पूरे बिहार की कहानी यही थी.गुटबाज़ी,दुश्मनी,वर्चस्व वाली बड़ी हत्यायें इसी मौक़े रची जाती थीं.दर्जनों जगह सांप्रदायिक दंगा होना लाज़िमी था.शासन-प्रशासन के लिए होली को शांतिपूर्ण सम्पन्न कराना एक चुनौती थी.लोग वही हैं,शहर वही है.मिज़ाज बदला हुआ है.इतना सभ्य,इतनी सादगी,इतनी सुंदर होली. यह हुआ कैसे?सिर्फ शराबबंदी से.अन्यथा होली के दिन शहर में निकलने की जुर्रत कोई मूर्ख ही कर सकता था.मगर,इस बार होलिकादहन के दिन से आज तक शहर में बेधड़क घूम रहा हूं,हर जगह ख़ुशनुमा माहौल है.कोई दिक़्क़त नहीं,कोई ज़बरदस्ती नहीं,कहीं समस्या नहीं.शब ए बरात भी साथ थी.एक टेंशन था.हर नुक्कड़ पर प्रशासन चुस्त दुरुस्त,कहीं से अनहोनी की ख़बर नहीं.होली-शब ए बरात की बधाई एक साथ चली.भारत की ख़ूबसूरती यही है.
मुन्नी मस्जिद गेवाल बिगहा में जुमे की नमाज़ पढ़ कर निकला तो बाहर पुलिस का भारी बंदोबस्त.शहर में कई स्थानों पर सीआरपीएफ जवान की तैनाती.हालांकि,पुलिस जवानों को कहीं मशक़्क़त नहीं करनी पड़ी.अफसर से पुलिसकर्मी तक बेफ़िक्र हो कर मोबाइल में मस्त दिखे.इतनी ख़ुशगवार होली की उम्मीद नहीं थी.यह बिहार के बदलने की तस्वीर है.शराबबंदी ने बदनाम होली का पूरा मंजरनामा बदल दिया है.मित्र धीरु भाई(धीरु शर्मा लोजपा नेता )को मालूम हुआ कि मैं गया में हूं, बुलावा भेजवाया.वसीम मेरा भाई(वसीम नैयर अंसारी,नेता अंसारी महापंचायत)और ख़ुर्शीद भाई(तनवीर अख़्तर दिवंगत एमएलसी के भाई अभी उनकी भाभी नाज़िश एमएलसी हैं)के साथ पुल उस पार मानपुर के लिए कल होली के दिन निकला,कहीं कोई दिक़्क़त नहीं,होली खेली जा रही थी मगर ज़बरन रंग डालने की परम्परा का अंत दिखा.एक बुंद रंग किसी ने नहीं डाला.मैं हैरतज़दा.क्या एक डेढ़ दशक पहले यह मुमकिन था?यहां साईकिल सवार को कीचड़ में फेंक दिया जाता था.आधा बेला तो कीचड़ की ही होली चलती थी. दावत में गये तो रंग से सराबोर हो कर लौटना था.रंग भी कैसा एक सप्ताह नहीं छूटने वाला.भांग का शरबत के बेग़ैर होली अधूरी ही थी.नशामुक्त बिहार में अब वह भी नहीं है.धीरु भाई से गले मिल कर होली की बधाई दी और उन्होंने अपने हाथों से खाने का एहतेमाम किया.उनके हाथ का बना मटन का जवाब नहीं.सादगी और प्रेम वाली होली बहुत अच्छी लगी.धीरु भाई की दोस्ती बेमिसाल है.
दोपहर के बाद रात्रि भोज मित्र सतीश (सतीश दास मखदूमपुर के राजद विधायक)के आवास पर था.क्या होली थी?पूरा कल्चर बदल गया.पुआ-पूड़ी,मटन,दही बड़ा,रगुल्ला सारी चीज़ ,ये लेने ,वह लेने का प्रेमभाव.सतीश अब भी नहीं बदले.मेरे लिए वही सतीश.सबके सतीश .विधायक होने का ज़रा भी गुमान नहीं.सतीश ऐसे ही रहें.यह दुआ है हमारी.यहां कॉमरेड निरंजन(निरंजन कुमार माले के गया ज़िला सचिव)से मुलाक़ात हो गयी.उन्हें बधाई दी चंदू(चंद्रशेखर जेएनयू के छात्र नेता)के कथित हत्यारों से हाथ मिलाने को लेकर,थोड़ा वह नाराज़ हुए.उनका और पूरी पार्टी का तर्क है कि अभी देश पर ख़तरा फासिज़्म से है.पहले इससे लड़ना है.सबको लड़ना है,सबको लेकर चलना है.
वहां से कौशलेन्द्र जी (केके सर हम नेता दलित थिंकर)के यहां चले.सतीश भी साथ हो लिए.पैदल ही चल पड़े.सतीश और कौशलेन्द्र जी आसपास ही रहते हैं.कौशलेन्द्र जी के यहां युवा प्रयास की पूरी टीम जुटी.सतीश,शमिमुल हक़,परवेज़,वसीम,ख़ुर्शीद भाई शमशीर,आबिद ख़ूब बातें हुईं.पहले और अब की होली प चर्चा चली.दिल बड़ा ख़ुश हुआ.मित्रों के मित्र रिंकु श्रीवास्तव(जेडीएस के जिला अध्यक्ष)के यहां भी जाना हुआ.रिंकु भाई अपने से होली पकवान परोसते रहे और खाइये और खाइये में बहुत खा लिया.गया एंजॉय ही करने आये थे,दोस्तों के साथ ख़ूब क्या भी.यहीं भाई एकबाल हुसैन ,फ़ैज़ी इमाम ,नाज़िश रहमानी मिल गये.तीनों बेहतरीन इंसान हैं.
ऐसी होली बार-बार आए,हर बार आये.हर इंसान के जीवन को रंगारंग ख़ुशियों से भर दे.भगवान विष्णु,महात्मा बुद्ध और सूफी पीरमंसूर की धरती गया पर इसी लिए मुझे नाज़ है.गया शहर और यहां के सम्मानित नागरिकों को समय मंथन का सलाम