सेराज अनवर
पटना:कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर को बिहार विधान परिषद के चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है.यह सोनिया गांधी का मास्टर स्ट्रोक है.बड़े-बड़े दिग्गज मुंह तकते रह गये और तारिक़ अनवर टिकट ले उड़े.पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक की ओर से जारी बयान के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अनवर की उम्मीदवारी को स्वीकृति प्रदान की.मालूम हो कि कांग्रेस में एक टिकट के लिए सैंकड़ों में उम्मीदवार थे.ख़ुद प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा सीरियस उम्मीदवार माने जा रहे थे.कार्यकारी अध्यक्ष कौक़ब क़ादरी भी गंभीर दावेदार थे.चंदन यादव,ललन यादव,राजकुमार राजन आदि की चर्चा भी ज़ोरों पर थी.मगर सोनिया की पसंद तारिक़ अनवर बने.

इस निर्णय के कई मायने हैं.कांग्रेस अब बिहार में ख़ुद अपने पैरों पर खड़ी होगी.एक दशक से कांग्रेस एक ऐसे नेता की तलाश में थी जिसके सहारे वह बिहार की राजनीति में पैर पसार सके.तारिक़ अनवर के रुप में कांग्रेस को वह चेहरा मिल गया है.तारिक़ बेदाग़ नेता हैं.मुसलमानों में इनकी छवि अच्छी है.संगठन चलाने का तजुर्बा है.इनके पिता शाह मुश्ताक़ अहमद उर्दू आंदोलन के झंडाबरदार रहे हैं.तारिक अनवर ने अपने राजनीतिक करियर का आग़ाज़ कमउम्री में ही कर दिया था.वह 1976 से 1981 तक बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस (आई) के अध्यक्ष पद पर रहे.उनके अध्यक्षता में युवा कांग्रेस हिरावल दस्ता मानी जाती थी.उनके काम को देखते हुए पार्टी ने 1982 से 1985 तक भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की ज़िम्मेवारी सौंप दी.1988 से 1989 तक बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया.बाद में उन्होंने सोनिया गांधी के इटली मूल पर सवाल खड़ा कर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.सन् 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ उनके विद्रोह के कारण उनके आयु में शुरू करियर में एक बड़ा मोड़ आया.वह तब कटिहार से लोकसभा सदस्य थे.शरद पवार ने उन्हें महाराष्ट्र से 2004 में राज्य सभा का सदस्य बना दिया.
इस निर्णय के कई मायने हैं.कांग्रेस अब बिहार में ख़ुद अपने पैरों पर खड़ी होगी.एक दशक से कांग्रेस एक ऐसे नेता की तलाश में थी जिसके सहारे वह बिहार की राजनीति में पैर पसार सके.तारिक़ अनवर के रुप में कांग्रेस को वह चेहरा मिल गया है.
गौरतलब है कि तारिक़ अनवर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कटिहार सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वे जीतने में कामयाब नहीं हो पाए थे. कटिहार उनकी परंपरागत सीट है.वह कई बार यहां से जीत कर लोकसभा पहुंचे.यूपीए सरकार में वह कृषि और खाद्य प्रसंस्करण केंद्रीय मंत्री थे. अनवर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी के बेहद करीबी थे.कहते हैं कि सीताराम केसरी ने ही इन्हें राजनीति में लाया था.
तारिक़ के उतारने से इतना तो तय माना जा रहा है कि मुसलमानों का रुख़ कांग्रेस की तरफ़ होगा और यह राजद के लिए ख़तरे की घंटी है.तारिक़ के सिर्फ़ उम्मीदवार बनने से ही बिहार की मुस्लिम राजनीति की फिज़ा बदलने लगी है.
एक केंद्रीय मंत्री को बिहार विधान परिषद में भेजने का अर्थशास्त्र यह है कि कांग्रेस बिहार में अपनी खोयी ज़मीन को वापस लाना चाहती है.तारिक़ के संगठनात्मक अनुभव को देखते हुए बहुत जल्द इन्हें बिहार कांग्रेस की कमान सौंपी जा सकती है.कांग्रेस गठबंधन की राजनीति से अलग चुनावी संभावना भी टटोल सकती है.तारिक़ के उतारने से इतना तो तय माना जा रहा है कि मुसलमानों का रुख़ कांग्रेस की तरफ़ होगा और यह राजद के लिए ख़तरे की घंटी है.तारिक़ के सिर्फ़ उम्मीदवार बनने से ही बिहार की मुस्लिम राजनीति की फिज़ा बदलने लगी है.बिहार की नौ सीटों पर 6 जुलाई को विधान परिषद के चुनाव होने हैं. नामांकन दाखिल करने की आज आखिरी तारीख है.राजद के फारुख़ शेख़ और जदयू के प्रो.ग़ुलाम गौस पर बेशक तारिक़ अनवर बड़े क़द के नेता हैं.