बेगूसराय/कौनैन

स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की 133 वीं जयंती को शिक्षा दिवस के तौर पर दारूल अदब लाइब्रेरी फुलवरिया बरौनी की गुलाम सरवर हॉल में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता व कारवां ने उर्दू बेगूसराय के जिला सचिव मोहम्मद असजद अली ने कहा कि मौलाना आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता के एक मिसाल थे,उनका मानना था कि कोई भी देश उस वक्त तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक पूरा देश शिक्षित नहीं होगा।इसलिए इंसान की शख्सियत की मुकम्मल तामीर का नाम तालीम है।मौलाना आजाद की पूरी जिंदगी हिंदुस्तान वासियों के लिए एक नमूना है।

उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिखाने के बराबर होगा उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी हिंदुस्तान की तरक्की के लिए कुर्बान कर दी। असजद अली ने कहा कि भारत में शिक्षा के विकास के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद 11 नवंबर अट्ठारह सौ अट्ठासी ईसवी को सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के बंटवारे की घोर विरोधी और हिंदू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पैरोकार में थे। हालांकि वह उर्दू के बेहद काबिल साहित्यकार और पत्रकार थे, लेकिन स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने उर्दू की जगह अंग्रेजी को तरजीह दी।ताकि भारत पश्चिम में कदम ताल मिला कर चल सकें।

मौलाना आजाद महिला शिक्षा के खास हिमायती थे।उनके पहल पर ही भारत में 1956 में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना हुई थी।आजाद जी को एक दूरदर्शी विद्वान माना जाता था,जिन्होंने 1950 के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था।शिक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी का गठन किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता कारवाने उर्दू के जिला अध्यक्ष मौलाना फैज़ुर्रह्मान कर रहे थे।वहीं फैजुर्रह्मान ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन है।लेकिन उन्हें मौलाना आजाद नाम से भी जाना जाता है। मौलाना

आजाद महात्मा गांधी के सिद्धांतों का समर्थन करते थे,उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया और वह अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान)के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओं में से थे। भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने निशुल्क शिक्षा,उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में अत्यधिक के साथ कार्य किया।इस मौके पर बरौनी जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती कयामुद्दीन,मौलाना अमानुल्लाह खालिद,मोहम्मद रुस्तम आजाद,मास्टर कुदुस,मास्टर मो0 सैफ,मो0 इंतेखाब,बाबा मुस्तकीम,अब्दुल हकीम सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे।

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