पटना(ज़ैब गज़ाली)जदयू के मुस्लिम नेताओं के लिए यह सबक़ है,जो पार्टी को क़ौम से उपर रखते हैं .मगर न इधर के रहते हैं न उधर के.यही हुआ कहकशां परवीन के साथ.आज न वह पार्टी की रहीं और न क़ौम की.इसी मौक़े से शायर ने कहा ;
ज़ाहिद–ए–तंग–नज़र ने मुझे काफ़िर जाना
और काफ़िर ये समझता है मुसलमान हूँ मैं
जदयू की राज्यसभा सदस्य कहकशां परवीन को इस बार जदयू ने उच्च सदन में भेजने से इंकार कर दिया.वह कहकशां परवीन ,जिसने मुसलमानों के जज़्बात को दरकिनार कर राज्यसभा में नागरिकता संशोधन क़ानून के पक्ष में वोट किया था.शायद इस उम्मीद में कि मुसलमान नाराज़ हो तो हो,पार्टी आलाकमान ख़ुश रहे और इसके एवज़ में फिर से उन्हें राज्यसभा की सदस्यता पक्की हो जाए.लेकिन हुआ इसका उलट.मुसलमानों की नज़र से कहकशां गिर ही गयीं,पार्टी ने भी धुतकार दिया.2014 में राज्यसभा भेजी गयीं कहकशां को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला.जबकि पार्टी ने हरिवंशवनारायण सिंह और रामनाथ ठाकुर को दूसरी बार उम्मीदवार बनाने में तनिक हिचकिचाहट नहीं दिखायी.कहकशां के साथ इसी अप्रैल में दोनों सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.लेकिन उन्हें इस बार टिकट नहीं मिला.
कहकशां परवीन भागलपुर की रहने वाली हैं.नगर निगम के महापौर रहीं कहकशां जदयू के दूसरे शक्तिशाली नेता सांगठनिक महासचिव आरसीपी सिंह दरबार से आती हैं.अब एक बार फिर पाला बदलने का संकेत दे रही हैं.उनका कहना है कि मैं साधारण पत्थर थी.इसे नीतीश कुमार ने तराशा.मुझे उन्होंने बहुत कुछ दिया.कोई शिकायत नहीं है.पार्टी आगे जो भी जिम्मेवारी देगी, मैं खुशी से उसे अंजाम दूंगी.मालूम हो कि गांधी मैदान में जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन के सुपर फ्लॉप होने के बाद आरसीपी सिंह की पार्टी में स्तिथि थोड़ी कमज़ोर पड़ी है.मुस्लिम नेताओं को नज़रअंदाज़ करने के पीछे पार्टी की यह सोच हो सकती है कि जो अपनी क़ौम का नहीं वो पार्टी के लिए भरोसेमंद क्या होगा?कहकशां से दीगर मुस्लिम नेताओं को सबक़ लेने की शायद जरूरत है.