SERAJ ANWAR
छात्रों का कितना बढ़ियां गर्दनी बाग़ में सत्याग्रह चल रहा था.सत्याग्रह से अंग्रेज झुक गये तो सरकार क्यों नहीं झुकती?सत्ता के गलियारे में छात्रों के सत्याग्रह से बेचैनी बढ़ ही रही थी,आंदोलन में ग़ैर-छात्र(राजनीतिज्ञ)घुस गये.पूर्णिया के सांसद की अपनी कोई पार्टी नहीं है.ज़ाहिर सी बात है उनका अपना छात्र संगठन भी नहीं है.जब वह धरना पर बैठे तो उनके राजनीतिक समर्थक साथ थे,छात्र नगण्य.आज भी चक्का जाम छात्र नहीं,उनके समर्थक कर रहे हैं.
अनशन पर जन सुराजी
इसी तरह प्रशान्त किशोर की पार्टी जन सुराज ने छात्र संगठन का गठन अभी नहीं किया है.उनके आमरण अनशन पर एक भी छात्र नहीं है,सब जन सुराजी लोग हैं.आइपैक भी सक्रीय है.बिहार भर से जन सुराजी नेता को अनशन-प्रदर्शन में शामिल होने के लिए बुलाया गया है और जब लाठी चलने लगी तो सब जन सुराजी भाग गये.पिटा गये बेचारे छात्र.यानी प्रशान्त किशोर और पप्पू यादव की लड़ाई में BPSC के अभ्यर्थी बुरी तरह फंस गये.
अभी भी चल रहा छात्रों का धरना
प्रशान्त और पप्पू में छात्रों की सहानुभूति और राजनीतिक लाभ उठाने की रस्साकशी चल रही है.प्रतीत होता है कि इनकी लड़ाई सरकार से नहीं,बल्कि आपस में है.कह सकते हैं कि प्रशान्त,पप्पू यादव लेवल में आ गये हैं.बात गिड़गिड़ाने से लेकर कुत्ता-बिल्ली तक आ गयी.छात्र समझ गए हैं प्रशान्त और पप्पू की राजनीतिक लड़ाई में लाठी के सिवा कुछ नहीं मिलना है.गर्दनी बाग़ में छात्रों का अभी भी धरना चल रहा है.मगर मीडिया का जमघट प्रशान्त और पप्पू के इर्द-गिर्द लगा है.
किसी को नहीं है छात्रों से हमदर्दी
जितना कपकापी ठंड गांधी मैदान में है उतना ही गर्दनी बाग़ में भी है.छात्रों से हमदर्दी किसको है?न मीडिया को,न प्रशासन को,न सत्ता को,न विपक्ष को,न प्रशान्त को और न पप्पू यादव को.नेतृत्वविहीन छात्र भी नहीं समझ पा रहे कि उनके साथ हमदर्दी जताने आये राजनेता उनके लिए नहीं बल्कि अपने लिए उनके साथ आने की कोशिश कर रहे हैं. छात्रों को ऐसे राजनेताओं से खुद को बचाना होगा और खुद का मजबूत नेतृत्व तैयार कर अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखना होगा. उन्हें एहसास कराना होगा कि छात्र भी उसी समाज के अभिन्न अंग हैं जिन्होंने उन्हें उस पद तक पहुचाया है जहां बैठकर वे छात्रों के हितों की रक्षा कर सकते हैं.
(लेखक समय मंथन के ग्रूप एडिटर हैं)