राजभवन में क़ैद रहने वाले ‘लाट साहब’नहीं हैं आरिफ मोहम्मद खान!

SERAJ ANWAR
कल यानी गुरुवार को आरिफ मोहम्मद खान बिहार के नये राज्यपाल के बतौर शपथ लेंगे.पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उन्हें 2 जनवरी को शपथ दिलाएंगे.शपथ से पहले ही आरिफ मोहम्मद खान एक्टिव मोड में हैं.राजभवन का फाटक खुला हुआ है.राजभवन की गाड़ियां कभी फुलवारी शरीफ़,कभी आचार्य किशोर कुणाल के घर,कभी नीतीश के गांव और कभी राबड़ी आवास के लिए फ़र्राटे भर रही हैं.

क्यों कहा जाता है ‘लाट साहब’?
राजभवनों की विशाल और भव्य शानोशौकत के मद्देनज़र राज्यपाल को ‘लाट साहब’ भी कहा जाता है.अंग्रेजों के समय में सामान्य रूप से गवर्नर या राज्यपाल को ‘लाट साहब’ कहकर पुकारा जाता था.इनके पास बहुत अधिक शक्तियां और सुविधाएं थीं, जिसकी वजह से इन्हें लाट साहब का संबोधन दिया गया.आज भी अधिक्तर गवर्नर आलीशान राजभवन में रह कर ख़ुद को लाट साहब से कम नहीं समझते.लेकिन,आरिफ मोहम्मद खान का मआमला बिल्कुल अलग है.ये लाट साहब नहीं,शुद्ध रूप से राजनीतिज्ञ हैं और एनडीए में खटपट की परस्तिथि में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह चिन्ता की बात है.

क्यों गये राबड़ी आवास?
आप देख नहीं रहे लाट साहब राजभवन में नहीं रह कर पटना के धूल-धक्कड़ सड़कों पर निरंतर गश्त कर रहे हैं.पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के जन्म दिन पर राज्यपाल के उनके आवास पहुंचने पर नीतीश कुमार के दिल पर क्या गुज़री होगी?यह सिर्फ ट्रेलर है.राजभवन से हर दिन गवर्नर की गाड़ी पटना में ऐसे ही सरपट निकलेगी.जिस दिन गवर्नर साहब बाहर नहीं निकलेंगे उस दिन राजभवन में आयोजन,समारोह,महफ़ील जमी रहेगी.आरिफ मोहम्मद खान आराम परस्त लाट साहब नहीं हैं.

इसी वर्ष चुनाव होना है;
आरिफ मोहम्मद खान की राजभवन में आमद ऐसे वक़्त में हुई है जब इसी वर्ष बिहार विधान सभा चुनाव होना है और भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर नरम-गरम दांव से जनता दल यूनाइटेड पहले से ही असहज चल रहा है. राज्य में नये राज्यपाल की तैनाती निश्चित रूप से नीतीश कुमार को मुश्किल में डालेगा.यह संकेत मिलना शुरू हो गया है.प्रोटोकॉल के तहत राज्यपाल का राबड़ी आवास जाना थोड़ा अटपटा सा लगता है.हालांकि,आज ही नए साल के पहले दिन वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनके गांव कल्याणबीघा भी गए, जहां वो मुख्यमंत्री की मां की पुण्यतिथि में शामिल हुए. नीतीश कुमार हर साल कल्याणबीघा स्थित राम लखन सिंह वैद्य स्मृति वाटिका में स्थापित अपनी मां की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं.

फुलवारी शरीफ पहुंचने का मतलब?
आरिफ मोहम्मद खान के एक दोस्त हैं नियाज अहमद .फुलवारी शरीफ स्थित FCI रोड पर रहते हैं.नियाज अहमद मूल रूप से दरभंगा के बहेड़ी के रहने वाले हैं. नियाज झारखंड सरकार में रेवेन्यू विभाग में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. वे 2010 में रिटायर हुए हैं.आरिफ मोहम्मद खान के पचास साल पुराना दोस्त हैं.आरिफ मोहम्मद खान चाहते तो नियाज़ अहमद को राजभवन आमंत्रित कर लेते.नियाज ने बताया कि ‘बिहार के गवर्नर ने जब फोन किया कि मैं आ रहा हूं तब मैंने मना किया कि बिना कारण क्यों आएंगे. मेरे पास कोई व्यवस्था नहीं है, हम एकदम मामूली इंसान हैं. तुम फोन करोगे तो हम खुद गवर्नर हाउस तुमसे मिलने आएंगे.’ ‘राज्यपाल ने जवाब दिया कि नहीं, मैं आऊंगा तुमसे मिलने के लिए और वह आ गए.यह एक दोस्ती की बेहतरीन मिसाल हो सकती है.मगर,आरिफ मोहम्मद खान के मुस्लिम बाहुल्य फुलवारी शरीफ में जाना कुछ अलग बात है,कुछ अलग संदेश भी.बीजेपी से बिदके मुसलमानों को साधने का एक पहलू भी.आरिफ मोहम्मद खान बिहार के पांचवें मुस्लिम राज्यपाल हैं और लम्बे अर्से यानी 28 साल के बाद बीजेपी ने मुस्लिम गवर्नर को बिहार भेजा है.

समय मंथन के ताज़ा अंक में पढ़ें पूरी स्टोरी;
मासिक पत्रिका ‘समय मंथन’के ताज़ा अंक में आरिफ मोहम्मद को लाट साहब समझने की भूल सत्तारूढ़ नीतीश कुमार की पार्टी को कैसे महंगी पड़ सकती है,पूरी स्टोरी पढ़ें.
(लेखक समय मंथन के ग्रूप एडिटर हैं)

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